Tuesday 31 May 2011

समान शक्ति और संवैधानिक अधिकार.

पिछड़े और अति पिछड़े समाज का विभाजन आज की आवश्यकता बन गयी है.

अति- पिछड़े समाज की स्थिति पिछले 20 वर्ष के आरक्षण के बाद भी नहीं सुधरी है बल्कि उनकी स्थिति दलित जाति के समान या कही -2 उनसे बदतर हो गयी है. अब प्रश्न यह है की यदि उनकी स्थिति दलित से बदतर हो गयी है तो उन्हें भी उसी प्रकार की संवैधानिक सुरक्षा, आरक्षण, और सरकारी मदद मिले. संवैधानिक सुरक्षा से तात्पर्य है OBC COMMISSION को भी SC और ST COMMISSION के समान शक्ति और संवैधानिक अधिकार.

अति- पिछड़े समाज को शैक्षिक संस्थानों और नौकरियो में आरक्षण उनकी जनसँख्या के आधार पर मिले. और सरकारी मदद से तात्पर्य प्रत्येक विद्यार्थी (SC.ST. OBC) को केन्द्रीय, राज्य स्तरीय वजीफा जैसे राजीव गाँधी, मौलाना अबुल कलाम आजाद स्कालरशिप मिले. अब सबसे पहले प्रश्न यह है की उनकी जाति कैसे निर्धारित किया जाय ?इसके लिए मेरे अनुसार SC समुदाय के जातियों के सामाजिक और शैक्षणिक स्थिति का विश्लेषण करके उसी मानदंड पर पिछड़ी जातियों को भी मापा जाय और जिन-२ पिछड़ी जातियों की स्थिति उनके समान या उनसे बदतर हो तो उन्हें अति- पिछड़े समुदाय में रक्खा जाय.

अब दूसरा प्रश्न है उनके लिए आरक्षण कैसे निर्धारित किया जाय? इसके लिए आनुपातिक तरीका अपनाया जाय. अब जैसे पिछडो की संख्या कुल जनसँख्या की 60 % हो और उसमे 20 % अति पिछड़े हो तो कुल पिछड़े और अति पिछड़े के बीच में (60.20) 3;1 का अनुपात होगा तो अति पिछडो के लिए आरक्षण जनसँख्या के आधार पर २० % और बचे हुए पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण 18 % (27-27.3=27-9=18) निर्धारित कर दिया जाय. इस प्रकार कुल आरक्षण की सीमा (23+20+18= 61% ).

तमिलनाडु राज्य के माडल के आधार पर हर राज्य और केंद्र में आरक्षण की सीमा बढ़ाना चाहिए जब तक सभी जातियों का प्रतिनिधित्व न हो जाय. जाति जनगणना में न केवल पिछड़े (OBC.SC.ST), बल्कि सभी जातियों के शैक्षिक, सामजिक और आर्थिक ब्यौरा होने से इसका अनुमान लगाना मुस्किल नही है.

कुछ राज्यों में OBC की कुछ जातियों को निकालकर सामान्य श्रेणी में करने की बात चल रही है मेरे अनुसार OBC की कोई जाति अभी इस स्थिति में नहीं है परन्तु यदि सरकार इसे करना जरुरी समझती है तो सामान्य श्रेणी के जातियों की सामाजिक स्थिति का विश्लेषण करके OBC की जो भी जाति की स्थिति वैसी मिले उसे सामान्य श्रेणी में रखा जाय यदपि सामान्य श्रेणी के सभी जातियों की सामाजिक स्थिति भी एक सामान नहीं है. ......DR. MAYA SHANKAR JHA

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